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"मात्र"

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मात्र तुम रोकर यूँ ना बयाँ करो अपनी दास्तान उस भीड़ में मैं भी मौजुद था सबसे पीछे मात्र कर्णपटल खुले थे मेरे चीरने की कोशिश भी की थी मैनें उस भीड़ कों पर, तमाशबीनों के लव़ाजमें में भी बड़ा जुनून था। मैं मर्द हुँ पर हकीकत को इस तरह झुठला नहीं सकता तुम्हारें मर्द की हुज्ज़त को मैं सरेआम बता भी नहीं सकता अब मैं तुम्हे सांत्वना ही दे सकता हुुँ स्त्रीत्व तो मेरे वश में नहीं "मात्र" एक फटेहाल कम्बल का सहारा है वो भी तुम ले लो। ~अतुल कुमार शर्मा~

"यहाँ के सिकन्दर"

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यहाँ के सिकन्दर बैखोफ नजारों पर नजर रखते है हम, चाहे जानबुझकर पर सब्र रखते है हम। मौका मिलने पर कुछ ऐसा कर जायेंगे, लोग देखेंगे "यहाँ के सिकन्दर" है हम।   अंजानी राहों पर हम जैसे निकल पड़े, अंजान नहीं इस बात से कि राह में रोडें अ ड़े । मंजिल से ऊँचें हम सपनें रखते है, जीवन की सत्यता को परछाई में रखते है। आका श  की आका श वाणी हम धरती से करते है, तभी तो जमीं पर सितारे उगाया करते है। जज्बा है, हिम्मत हैं, जुनून है ऐसा कि, सफलता को वार-वार, हार को तार-तार करते है। सीखना है सीख तुमको समय कहाँ अब सीख लो, तुम भी वो कर सकते हो जो  सपने में देख लो। आसान नहीं होता पर नामुमकिन भी कहाँ है, तुम्हारें उजालें से दमकता नया सूरज यहाँ है। ~अतुल कुमार शर्मा~