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"ये आँखे"

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ये आँखे ये आँखे! आँखो ही आँखो में बयां कर देती है सारा सच  मन की कपटता ,वाचालता या इन्सानियत ,प्रेम ,अपनत्व भाव  क्योंकि आँखे कभी झूठ नहीं बोलती। आँखे रखती है मन को जीवित , आँखे दिखाती है कई जागते सपने , आँखो में वो उत्साह होता है ... जो पहले कभी न था  क्योंकि सपने कभी नहीं मरते।  आँखे हमेशा दिखाती है आईना खुदका और  दुसरो का  आँखो ही आँखो में होता है कभी टकराव  तो ठेस पहुँचाता है या मन को भा जाता है  क्योंकि आईना ज्यों का त्यों दिखाता है।  आँखे कराती है सुन्दरता की पहचान  कभी मन की पहचान भी करा देती है   आँखे ही देती है जान पर कभी ये ही मार देती है  क्योंकि सुन्दरता तो कल्पना से भी परे है।  आँखो में ही ज़ज्बा होता है ...  कुछ कर गुजरने का  क्योंकि आँखो में चमक होती है  आँखो में ही अपनी  एक  दुनिया होती है  जिसका सुख तो 'परम' होता है  क्योंकि आँखे आख़िर आँखे होती है  ये आँखे! ~अतुल कुमार शर्मा~

"मैं और मेरी कल्पना"

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मैं और मेरी कल्पना कभी-कभी, मेरे मन में एक विचार प्लावित होता है, जो मेरे तन को इतना प्रफुल्लित  कर देता है, कि  में कुछ अजीब हो जाता हुँ। खुली आँखो से में उस दिव्यता को देखता हुँ ,  जो बंद आँखो से दुर्लभ सी प्रतीत होती है। इस दिव्यता में , मैं उड़ान भरता हुँ , वहाँ अवरोध नगण्य है। मेरे जीवित रहने का प्रत्येक उत्स वहाँ मौजूद है। भेदभाव से परे मात्र स्वछन्दता है वहाँ। खुले आसमान में तैरता हु मैं , उस पतंग कि भाँति नहीं जिसकी डोर किसी ने थामे रखी है , और ना ही जिसकी डोर कट चुकी है , यहाँ उड़ने वाला और उड़ाने वाला मात्र एक ही है।  मैं अकेलेपन से परहेज करता हुँ , यह सत्य है। परन्तु इसकी सत्यता मेरे सामने कोई मूल्य नहीं रखती , जब मैं कुछ अजीब हो जाता हुँ प्रेम उमड़ता है तब मुझमें मेरी आकांक्षाओं पर , कल्पनाओं पर, ..... ~अतुल कुमार शर्मा~