शाख से पत्ते का टूट जाना जरुरी था
शाख से पत्ते का टूट जाना जरुरी था
नया आना जरुरी था, उसका जाना जरुरी था
मुझे हासिल हुई ख़ुशी की खबर सबको तो न थी
ग़म-ए-गुलज़ार था मैं तो, उसका हँसना जरुरी था
ये मेरे रास्ते में आने वाले काँटों की सोहबत थी
उनको चुभना जरुरी था, लहू चखना जरुरी था
अमीर तो था ही में लेकिन गरीबी फिर भी सर पर थी
मयस्सर भी तो दौलत थी, मोहब्बत भी जरुरी थी
फ़क़त हालत का मारा हुआ होता तो बात क्या थी
निग़ाह-ए-यार ने मारा, तो मरना भी जरुरी था
~~ अतुल कुमार शर्मा ~~
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें