"मात्र"

मात्र
तुम रोकर यूँ ना बयाँ करो अपनी दास्तान
उस भीड़ में मैं भी मौजुद था
सबसे पीछे मात्र कर्णपटल खुले थे मेरे
चीरने की कोशिश भी की थी मैनें उस भीड़ कों
पर, तमाशबीनों के लव़ाजमें में भी बड़ा जुनून था।


मैं मर्द हुँ पर हकीकत को इस तरह झुठला नहीं सकता

तुम्हारें मर्द की हुज्ज़त को मैं सरेआम बता भी नहीं सकता
अब मैं तुम्हे सांत्वना ही दे सकता हुुँ स्त्रीत्व तो मेरे वश में नहीं
"मात्र" एक फटेहाल कम्बल का सहारा है वो भी तुम ले लो।

~अतुल कुमार शर्मा~

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