"शान"

शान उस दीवाने बादल की दीवानगी का ये बारिश.....पैगाम बनती है। लब्ज़ बनते है बिगड़ते है सभी के आखिरी कोशिश....पर आम लगती है। गम की दहलीजों से वापस लौट जाऊ ये साज़िश.....नाकाम लगती है। तुझसे रुखसत था मैं कबसे भूल जाऊ इक/फिर नई शुरुआत...मेरी शान लगती है। ~अतुल कुमार शर्मा~