"हकीकत"

हकीकत इन्सानियत के चोले का फटा हुआ किनारा तलाश रहा है किसी रफ़ूगर को मरम्मत की जरुरत है इसको ताकि इन्सानियत अपनी सीमा पार न कर सके। संकीर्ण अलंकरण को देखकर संकीर्णता व्याप जाती है मन में काश ज़िस्म को पाने की तलाश में रूह की प्यास मिल सकें। दुःख नहीं मुझे आश्चर्य होता है मानवीय आंकलन पर तड़प को नकारने की अदम्य कला आखिर खुद तड़प कर सह सके। जिस्मानी रिश्तों की आड़ में मानवीयता रौंदता है तू भी जना है औरत से रहम कर दे गर कर सके। ~ अतुल कुमार शर्मा ~