"मैं कुछ कहना चाहता हूँ ……"
इस बात से ख़फ़ा है
'आदर्श' बन बैठे हम आपके लिए फिर भी जुदा हम हुए।
हर अदाओं से वाखिफ है हम आपकी और आप हमारी
ना जाने खुदा ने क्या चाहत की
ना आप ही हमे मिले और ना हम ही …… ।
दास्तानों से हम दोस्ताना ना भूले
रह - रहके हर लम्हा याद किया इनको लेकर ,
बात जो सच्ची थी वो कह ना सके
अनचाही बातों से लबरेज़ ज़ुबान लेकर भूले।
इन्तज़ार है उस आस का जो दूर नहीं या पास है
आलम नहीं है जनता वो खास है
खास है पर ना पास है ,
ख़्वाहिश यही है कह दूँ जो चाहता हूँ बोल दूँ
अब ना अटकू मैं, अब ना भटकूँ मैं ,
'आदर्श' हूँ 'आदर्श' ही बनूँ मैं।
~अतुल कुमार शर्मा~
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