"ये आँखे"
ये आँखे!
आँखो ही आँखो में बयां कर देती है सारा सच
मन की कपटता ,वाचालता या इन्सानियत ,प्रेम ,अपनत्व भाव
क्योंकि आँखे कभी झूठ नहीं बोलती।
आँखे रखती है मन को जीवित ,
आँखे दिखाती है कई जागते सपने ,
आँखो में वो उत्साह होता है ... जो पहले कभी न था
क्योंकि सपने कभी नहीं मरते।
आँखे हमेशा दिखाती है आईना खुदका और दुसरो का
आँखो ही आँखो में होता है कभी टकराव
तो ठेस पहुँचाता है या मन को भा जाता है
क्योंकि आईना ज्यों का त्यों दिखाता है।
आँखे कराती है सुन्दरता की पहचान
कभी मन की पहचान भी करा देती है
आँखे ही देती है जान पर कभी ये ही मार देती है
क्योंकि सुन्दरता तो कल्पना से भी परे है।
आँखो में ही ज़ज्बा होता है ... कुछ कर गुजरने का
क्योंकि आँखो में चमक होती है
आँखो में ही अपनी एक दुनिया होती है
जिसका सुख तो 'परम' होता है
क्योंकि आँखे आख़िर आँखे होती है
ये आँखे!
~अतुल कुमार शर्मा~
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