"मैं कब था"

मैं कब था
जब मैं पुरानी यादों से टकरा जाता हूँ
भविष्य की कल्पना और 
वर्तमान की उपलब्धियों को लेकर 
मैं गर्वित हो उठता हुँ 
कुछ और बेहतर करने के लिये।


उन ऊँचाइयों से कोई मुझे पुकार रहा है
मुझे जाना है वहाँ, उसे हासिल करना है
वहाँ पहुँचने को सीढ़ियाँ नहीं है
कोई रास्ता हो यह भी तय नहीं है
पर मुझे कोई ग़म नहीं है।


धनी हूँ मैं कल्पनाओं से, आशाओं से, हौसलों से
जो हमेशा उन्मुक्त है
वे रास्ता तय करवायेंगे, साथ मैं सीढ़ियाँ भी
मुझे बस चलना है, रुकना नहीं है
मैं रुका तो "मैं कब था" फिर
नहीं थी पुरानी यादें, भविष्य की कल्पना और
वर्तमान की उपलब्धियाँ। 

~अतुल कुमार शर्मा~

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